लादेन का वारिस जवाहरी: 110 करोड़ का इनामी बना अल कायदा का नेता
दुबई. आतंकवादी संगठन अल कायदा ने कुख्यात आतंकवादी अयमान अल जवाहरी को नेता घोषित किया है। जवाहरी ओसामा बिन लादेन की जगह लेगा। ओसामा को 2 मई को एक ऑपरेशन में अमेरिकी कमांडो ने पाकिस्तान के एबटाबाद में खत्म कर दिया था। जवाहरी पर 110 करोड़ रुपए का इनाम है। नेता बनने के तुरंत बाद जवाहरी ने एलान किया कि अमेरिका और ईजराइल के खिलाफ उनकी जंग जारी रहेगी।अल जवाहरी लंबे समय से अल कायदा में नंबर दो था। जवाहरी मिस्र का रहने वाला है और आतंकवादी बनने के पहले वह डॉक्टर था। वह लंबे समय से वह अल कायदा के लिए वीडियो और ऑडियो टेप जारी कर रहा है, जिसमें उसने पश्चिमी देशों को निशाना बनाने की बात की है।
अल कायदा ने एक वेबसाइट पर जारी बयान में कहा कि हम खुदा से दुआ करते हैं कि अल जवाहरी के नेतृत्व में अल कायदा को सफलता मिलें और धरती से तानाशाहों औऱ काफिरों का शासन खत्म हो।
अमेरिका को लंबे समय से जवाहरी की तलाश है। अमेरिका जवाहरी को 2001 में अमेरिका पर हुए हमले के भी पहले से खोज रहा है। 2001 में न्यू यार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हुए हमले में 3000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। अमेरिका ने उसके लिए ओसामा बिन लादेन को जिम्मेदार बताया था। तंजानिया और कीनिया में 1998 में अमेरिकी दूतावासों पर हुए हमले में मुख्य भूमिका निभाने के आरोप में 1999 में उसका अनुपस्थिति में ट्रायल हुआ। इसमें वह दोषी पाया गया था। इन हमलों में 224 लोग मारे गए थे।
लीबिया में अल कायदा के दो नेता - अतिय अबद अल रहमान और अबु याह्या अल लिबी भी अल कायदा चीफ बनने की दौड़ में शामिल थे, लेकिन संगठन के अधिकांश नेताओं ने जवाहरी का समर्थन किया। हालांकि जवाहरी संगठन में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है। उसकी समझौता न करने और संगठन को अपने हिसाब से चलाने की छवि के कारण कैडर में बड़ी संख्या में लोग उससे नाराज भी हैं।
शुरु से ही उग्रवादी था अल जवाहरी
जवाहरी 15 साल की उम्र में पहली बार गैर कानूनी घोषित किए गए संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का सदस्य बनने के बाद गिरफ्तार किया गया। 1973 में उसने मिस्र में मुस्लिमों द्वारा छेड़े गए जेहाद में हिस्सा लिया। चरमपंथियों ने मिस्र में एक परेड के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या कर दी और तब संदेह के आधार पर जवाहरी गिरफ्तार किया गया। हालांकि उसे हत्या के आरोप से मुक्त कर दिया गया, लेकिन अवैध हथियार रखने के आरोप में उसे तीन साल की सजा हुई। रिहा होने के बाद 1985 में वह पेशावर के रास्ते अफगानिस्तान चला गया और तभी से आतंकी गतिविधियों से जुड़ा हुआ है।
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